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फड़  : पुं० [सं० पण] १. वह कपड़ा जो छोटे दूकानदार जमीन पर बिक्री की चीजे सजाकर रखने के लिए बिछाते हैं। २. कोठी, दूकान आदि का वह भाग जहाँ बैठकर चीजें खरीदी या बेचीं जाती है। पद—फड़पर-मुकाबले में। सामने। उदाहरण—भगे बलीमुख महाबली लखि फिरैं न फट (फड़) पर झेरे।—रघुराज। ३. बिछावन बिछौना। उदाहरण—सूल से फलन के फर (फड़) पैतिय फूल-छरी सी परी मरझानी। ४. जूएखाने में, वह स्थान जहाँ जुआरी बैठकर जूआ खेलते हैं। ५. दल। समूह। क्रि० प्र०—बाँधना। पुं० [सं० पटल या फल] १. गाड़ी का हरसा। २. वह गाड़ी जिस पर तोप रखकर ले चलते हैं। चरख। पुं०=फल।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) फड़क
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
फड़कन  : स्त्री० [हिं० फड़कना] १. फड़कने की क्रिया या भाव। फड़क। फड़फड़ाहट। २. धड़कन। ३. उत्सुकता। वि० १. भड़कनेवाला। जैसे—फड़कन बैल। २. चंचल। ३. तेज।
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फड़कना  : अ० [अनु०] १. इस प्रकार बार-बार नीचे ऊपर या इधर-उधर हिलना कि फड़-फड़ शब्द हो। २. शरीर के किसी अंग में स्फुरण होना। अंग का वायु-विकार आदि के कारण रह-रहकर थोड़ा उभरना और दबना। जैसे—आँख या कंधा फड़कना। मुहावरा—(किसी की) बोटी-बोटी फड़कना=(किसी का) बहुत अधिक चंचल होना। ३. कोई बहुत बढ़िया या विलक्षण चीज देखकर या बात सुनकर मन में उक्त प्रकार का स्फुरण होना जो चीज या बात के विशेष प्रशंसक होने का सूचक होता है। संयो० क्रि०—उठना।—जाना। ४. पक्षियों के पर हिलना। फड़फड़ाना। अ०=फटकना। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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फड़काना  : स० [हिं० फड़कना का प्रे०] १. किसी को फड़कने में प्रवृत्त करना। २. उत्तेजित करना। भड़काना। ३. विचलित करना। ४. हिलाना-डुलाना।
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फड़का-पेलन  : पुं० [देश] एक प्रकारका बैल जिसका सींग सीधा ऊपर को उठा और दूसरा नीचे को झुका होता है।
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फड़नबीस  : पुं० [फा० फर्दनवीस] मराठों के राजत्वकाल का एक राजपद। विशेष—मूलतः यह पद राजसभा के साधारण लेखकों को दिया जाता था। पर बाद में यह दीवानी या माल विभाग के ऐसे कर्मचारी के ऐसे कर्मचारियों को भी दिया जाने लगा था जो बड़े-बड़े इनाम या जागीरें देने की व्यवस्था करते थे।
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फड़फड़ाना  : अ० [अनु०] १. फड़-फड़ शब्द होना। २. पक्षियों आदि का पकड़े जाने पर बंधन से निकल भागने के लिए जोरों से पर मारते हुए फड़-फड़ शब्द करना। ३. लाक्षणिक अर्थ में घोर कष्ट, विपत्ति, संकट आदि से अत्यधिक संतप्त होना और उससे छुटकारा पाने के लिए प्रयत्न करना। ४. विशेष उत्सुकता के कारण चंचल होना। स० १. कोई चीज बार-बार हिलाकर फड़-फड़ शब्द उत्पन्न करना। जैसे—पर फड़फड़ाना। २. दे० ‘फटफटाना’।
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फड़बाज  : पुं० [हिं० फड़+बाज (प्रत्यय)] [भाव० फड़बाजी] वह जो अपने यहाँ जूआ खेलने के लिए बुलाता हो। अपने यहाँ लोगों को जूआ खेलानेवाला व्यक्ति।
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फड़िया  : पुं० [हिं० फड़-दूकान+इया (प्रत्यय)] १. वह बनिया जो फुटकर अन्न बेचता हो। २. वह जो अपने यहाँ जूए का फड़ रखकर लोगों को जूआ खेलाता हो। फड़बाज।
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फड़ी  : स्त्री० [हिं० फड़] ईंटों, पत्थरों आदि का परिमाण स्थिर करने के लिए लगाया जानेवाला वह ढेर जो तीस गज लम्बा, एक गज चौड़ा और एक गज ऊँचा हो।
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फड़ई, फड़ही  : स्त्री० १. फरुही। २. छोटा फावड़ा।
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फड़ोलना  : स० [सं० स्फुरण] किसी चीज को उलटना-फलटना। इधर-उधर या ऊपर-नीचे करना। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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