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पाखंड  : पुं० [सं०√पा (रक्षा करना)+क्विप् पा√खंड (खंडन करना)+अण्] [वि० पाखंडी] १. वेदों की आज्ञा, मत या सिद्धांत के विरुद्ध किया जानेवाला आचरण। २. धार्मिक क्षेत्र में, अपने धर्म पर सच्ची निष्ठा और भक्ति रखते हुए केवल लोगों को दिखलाने के लिए झूठ-मूठ बढ़ा-चढ़ाकर किया जानेवाला पाठ-पूजन तथा अन्य धार्मिक आचार-व्यवहार। ३. लौकिक क्षेत्र में, वे सभी में, वे सभी आचार-व्यवहार जो झूठ-मूठ अपने आपको धर्म-परायण, नीति-परायण और सत्यनिष्ठ सिद्ध करने के लिए किये जाते हैं। अपना छल-कपट, धूर्तता, स्वार्थ-परता आदि छिपाने के लिए किया जानेवाला आचार-व्यवहार। आडंबर। ढकोसला। ढोंग (हिपोक्रिसी) मुहा०—पाखंड फैलाना=दूसरों को ठगने और धोखे में रखने के लिए आडंबरपूर्ण थोथे उपाय रचना। दुष्ट उद्देश्य से ऐसा दिखावटी काम करना जो अच्छे इरादे से किया हुआ जान पड़े। ढकोसला खड़ा करना। जैसे—बाबाजी ने गाँव में खूब पाखंड फैला रखा था। ४. वह व्यय जो किसी को धोखा देने के लिए किया जाय। ५. दुष्टता। पाजीपन। शरारत। ६. नीचता। वि०=पाखंडी।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पाखंडी (डिन्)  : वि० [सं० पाखंड+इनि] १. वेद-विरुद्ध आचार करनेवाला। २. वेदाचार का खंडन या निंदा करनेवाला। ३. बनावटी धार्मिकता, सदाचार आदि दिखलानेवाला। ४. दूसरों को ठगने या धोखा देने के लिए आडंबर या ढोंग रचनेवाला।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पाख  : पुं० [सं० पक्ष] १. चांद्रमास का कोई पक्ष। २. महीने का आधा समय। पंद्रह दिन का समय। पखवाड़ा। ३. कच्चे मकानों की दीवारों के वे ऊँचे भाग जिन परबँड़ेर रहती है। ४. पंख। पर।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पाखर  : स्त्री० [सं० पक्षर, प्रक्खर] १. युद्धकाल में, घोड़ों या हाथियों पर डाली जानेवाली एक तरह की लोहे की झूल। २. उक्त झूल के वे भाग जो दोनों ओर झूलते रहते हैं। ३. जीन। ४. ऐसा टाट या और कोई मोटा कपड़ा जिस पर मोम, राल आदि का लेप किया हुआ हो। (ऐसा कपड़ा जल्दी भीगता या सड़ता-गलता नहीं है।) पुं०=पाकर।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पाखरी  : स्त्री० [हिं० पाखर=झूल] टाट का बिछावन जिसे गाड़ी में बिछाते हैं तब उसमें अनाज भरतें हैं।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पाखा  : पुं० [सं० पक्ष, प्रा० पक्ख] १. कोना। छोर। २. कुछ दीवारों में ऊपर की ओर की वह रचना जो बीच में सबसे ऊँची और दोनों ओर ढालुई होती है। (ऐसी रचना इसलिए होती है कि उसके ऊपर ढालई छत या छाजन डाली जा सके) ३. दरवाजों के दोनों ओर के वे स्थान जिनके साथ, दरवाजे के खुले होने की अवस्था में किवाड़ लगे या सटे रहते हैं। ४. पाख।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पाखान  : पुं०=पाषाण (पाथर)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पाखान भेद  : पुं०=पाषाण भेद।
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पाखाना  : पुं० [फा० पाखान
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पाखंड  : पुं० [सं०√पा (रक्षा करना)+क्विप् पा√खंड (खंडन करना)+अण्] [वि० पाखंडी] १. वेदों की आज्ञा, मत या सिद्धांत के विरुद्ध किया जानेवाला आचरण। २. धार्मिक क्षेत्र में, अपने धर्म पर सच्ची निष्ठा और भक्ति रखते हुए केवल लोगों को दिखलाने के लिए झूठ-मूठ बढ़ा-चढ़ाकर किया जानेवाला पाठ-पूजन तथा अन्य धार्मिक आचार-व्यवहार। ३. लौकिक क्षेत्र में, वे सभी में, वे सभी आचार-व्यवहार जो झूठ-मूठ अपने आपको धर्म-परायण, नीति-परायण और सत्यनिष्ठ सिद्ध करने के लिए किये जाते हैं। अपना छल-कपट, धूर्तता, स्वार्थ-परता आदि छिपाने के लिए किया जानेवाला आचार-व्यवहार। आडंबर। ढकोसला। ढोंग (हिपोक्रिसी) मुहा०—पाखंड फैलाना=दूसरों को ठगने और धोखे में रखने के लिए आडंबरपूर्ण थोथे उपाय रचना। दुष्ट उद्देश्य से ऐसा दिखावटी काम करना जो अच्छे इरादे से किया हुआ जान पड़े। ढकोसला खड़ा करना। जैसे—बाबाजी ने गाँव में खूब पाखंड फैला रखा था। ४. वह व्यय जो किसी को धोखा देने के लिए किया जाय। ५. दुष्टता। पाजीपन। शरारत। ६. नीचता। वि०=पाखंडी।
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पाखंडी (डिन्)  : वि० [सं० पाखंड+इनि] १. वेद-विरुद्ध आचार करनेवाला। २. वेदाचार का खंडन या निंदा करनेवाला। ३. बनावटी धार्मिकता, सदाचार आदि दिखलानेवाला। ४. दूसरों को ठगने या धोखा देने के लिए आडंबर या ढोंग रचनेवाला।
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पाख  : पुं० [सं० पक्ष] १. चांद्रमास का कोई पक्ष। २. महीने का आधा समय। पंद्रह दिन का समय। पखवाड़ा। ३. कच्चे मकानों की दीवारों के वे ऊँचे भाग जिन परबँड़ेर रहती है। ४. पंख। पर।
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पाखर  : स्त्री० [सं० पक्षर, प्रक्खर] १. युद्धकाल में, घोड़ों या हाथियों पर डाली जानेवाली एक तरह की लोहे की झूल। २. उक्त झूल के वे भाग जो दोनों ओर झूलते रहते हैं। ३. जीन। ४. ऐसा टाट या और कोई मोटा कपड़ा जिस पर मोम, राल आदि का लेप किया हुआ हो। (ऐसा कपड़ा जल्दी भीगता या सड़ता-गलता नहीं है।) पुं०=पाकर।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पाखरी  : स्त्री० [हिं० पाखर=झूल] टाट का बिछावन जिसे गाड़ी में बिछाते हैं तब उसमें अनाज भरतें हैं।
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पाखा  : पुं० [सं० पक्ष, प्रा० पक्ख] १. कोना। छोर। २. कुछ दीवारों में ऊपर की ओर की वह रचना जो बीच में सबसे ऊँची और दोनों ओर ढालुई होती है। (ऐसी रचना इसलिए होती है कि उसके ऊपर ढालई छत या छाजन डाली जा सके) ३. दरवाजों के दोनों ओर के वे स्थान जिनके साथ, दरवाजे के खुले होने की अवस्था में किवाड़ लगे या सटे रहते हैं। ४. पाख।
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पाखान  : पुं०=पाषाण (पाथर)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पाखान भेद  : पुं०=पाषाण भेद।
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पाखाना  : पुं० [फा० पाखान
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