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शब्द का अर्थ

पसर  : पुं० [सं० प्रसर] १. हथेली का कटोरी या दोने के आकार का बनाया हुआ वह रूप जिसमें कोई चीज भर कर किसी को दी जाती है। २. उक्त में भरी हुई वस्तु या उसकी मात्रा। ३. मुट्ठी। पुं० [देश०] १. रात के समय पशुओं को चराने का काम। उदा०—वह रात को कभी कभी पसर भी चराता था।—वृन्दावनलाल वर्मा। २. पशुओं के चरने की भूमि। चरागाह। ३. पशु चराते समय एक तरह के गाय जानेवाले गीत। ४. आक्रमण। चढ़ाई। धावा। पुं०=प्रसार।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पसर-कटाली  : स्त्री० [सं० प्रसर कटाली] भटकटैया। कटाई।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पसरन  : स्त्री० [सं० प्रसारिणी] वृक्षों पर चढ़नेवाली एक जंगली लता। स्त्री० [हिं० पसरना] पसरने की क्रिया, दशा या भाव।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पसरना  : अ० [सं० प्रसरण] १. आगे की ओर बढना। फैलना। २. हाथ-पैर फैलाकर तथा अधिक जगह घेरते हुए बैठना या लेटना। ३. अपना आग्रह या इच्छा पूरी कराने के लिए तरह-तरह की बातें करना। संयो० क्रि०—जाना।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पसरहट्टा  : पुं० [हिं० पंसारी+हाट] वह बाजार या हाट जिसमें पंसारियों की बहुत-सी दूकानें होती हैं।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पसरहा  : पुं०=पसरहट्टा।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पसराना  : स० [हिं० पसराना का प्रे०] किसी को पसरने में प्रवृत्त करना।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पसरी  : स्त्री०=पसली।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पसरौहाँ  : वि० [हिं० पसरना+औहाँ (प्रत्य०)] १. पसरनेवाला। २. जिसमें अधिक पसरने की प्रवृत्ति हो।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पसर  : पुं० [सं० प्रसर] १. हथेली का कटोरी या दोने के आकार का बनाया हुआ वह रूप जिसमें कोई चीज भर कर किसी को दी जाती है। २. उक्त में भरी हुई वस्तु या उसकी मात्रा। ३. मुट्ठी। पुं० [देश०] १. रात के समय पशुओं को चराने का काम। उदा०—वह रात को कभी कभी पसर भी चराता था।—वृन्दावनलाल वर्मा। २. पशुओं के चरने की भूमि। चरागाह। ३. पशु चराते समय एक तरह के गाय जानेवाले गीत। ४. आक्रमण। चढ़ाई। धावा। पुं०=प्रसार।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पसर-कटाली  : स्त्री० [सं० प्रसर कटाली] भटकटैया। कटाई।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पसरन  : स्त्री० [सं० प्रसारिणी] वृक्षों पर चढ़नेवाली एक जंगली लता। स्त्री० [हिं० पसरना] पसरने की क्रिया, दशा या भाव।
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पसरना  : अ० [सं० प्रसरण] १. आगे की ओर बढना। फैलना। २. हाथ-पैर फैलाकर तथा अधिक जगह घेरते हुए बैठना या लेटना। ३. अपना आग्रह या इच्छा पूरी कराने के लिए तरह-तरह की बातें करना। संयो० क्रि०—जाना।
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पसरहट्टा  : पुं० [हिं० पंसारी+हाट] वह बाजार या हाट जिसमें पंसारियों की बहुत-सी दूकानें होती हैं।
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पसरहा  : पुं०=पसरहट्टा।
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पसराना  : स० [हिं० पसराना का प्रे०] किसी को पसरने में प्रवृत्त करना।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पसरी  : स्त्री०=पसली।
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पसरौहाँ  : वि० [हिं० पसरना+औहाँ (प्रत्य०)] १. पसरनेवाला। २. जिसमें अधिक पसरने की प्रवृत्ति हो।
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