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शब्द का अर्थ
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पश्चात् :
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अव्य० [सं० अपर+आति, पश्च-आदेश] किसी अवधि, क्रम, घटना आदि के बीतने अथवा कुछ समय व्यतीत होने पर। उपरांत। पीछे। बाद। पुं० १. पश्चिम दिशा। २. अंत। समाप्ति। ३. अधिकार। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
पश्चात् कर्म (र्मन्) :
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पुं० [सं० मध्य० स०] वैद्यक के अनुसार वह कर्म जिससे रोगी के स्वस्थ होने के उपरान्त उसके शरीर के बल, वर्ण और अग्नि की वृद्धि होती हो। भिन्न-भिन्न रोगों से मुक्त होने पर भिन्न-भिन्न पश्चात् कर्म बतलाये गये हैं। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
पश्चात्ताप :
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पुं० [सं० मध्य स०] अपने किसी कर्म के अनौचित्य का भान होने पर मन में होनेवाला दुःख जो यह सोचने को विवश करता है कि मैंने यह काम क्यों किया। २. किसी किये हुए अनुचित कर्म के पाप से मुक्त होने के लिए अथवा अपनी आत्मा को शांति देने के लिए किया जानेवाला तप। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
पश्चात्तापी (पिन् :
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वि० [सं० पश्चात्ताप+इनि] जो पश्चात्ताप करता हो। |
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समानार्थी शब्द-
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पश्चात् :
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अव्य० [सं० अपर+आति, पश्च-आदेश] किसी अवधि, क्रम, घटना आदि के बीतने अथवा कुछ समय व्यतीत होने पर। उपरांत। पीछे। बाद। पुं० १. पश्चिम दिशा। २. अंत। समाप्ति। ३. अधिकार। |
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पश्चात् कर्म (र्मन्) :
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पुं० [सं० मध्य० स०] वैद्यक के अनुसार वह कर्म जिससे रोगी के स्वस्थ होने के उपरान्त उसके शरीर के बल, वर्ण और अग्नि की वृद्धि होती हो। भिन्न-भिन्न रोगों से मुक्त होने पर भिन्न-भिन्न पश्चात् कर्म बतलाये गये हैं। |
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पश्चात्ताप :
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पुं० [सं० मध्य स०] अपने किसी कर्म के अनौचित्य का भान होने पर मन में होनेवाला दुःख जो यह सोचने को विवश करता है कि मैंने यह काम क्यों किया। २. किसी किये हुए अनुचित कर्म के पाप से मुक्त होने के लिए अथवा अपनी आत्मा को शांति देने के लिए किया जानेवाला तप। |
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पश्चात्तापी (पिन् :
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वि० [सं० पश्चात्ताप+इनि] जो पश्चात्ताप करता हो। |
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