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शब्द का अर्थ
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पट्टांशुक :
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पुं० [सं० पट्ट-अंशुक,कर्म० स०] १. रेशमी कपड़ा। २. शरीर के ऊपरी भाग में पहनने या ओढ़ने का कपड़ा। |
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समानार्थी शब्द-
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पट्टा :
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पुं० [सं० पट्ट] १. वह अधिकार-पत्र जो भूमि या स्थावर संपत्ति का स्वामी किसी असामी, किरायेदार या ठेकेदार को इसलिए लिखकर देता है कि वह उस भूमि या स्थावर संपत्ति का कुछ समय के लिए उचित उपयोग कर सके, उससे होनेवाली आय वसूल कर सके अथवा उसकी पैदावार बेच सके; और उससे होने वाली आय वसूल कर सके अथवा उसकी पैदावार बेंच सके; और उसका कुछ अंश भूमि या संपत्ति के स्वामी को भी देता रहे। क्रि० प्र०—देना।—लिखना। २. वह पत्र या लेख्य जो मध्ययुग में असामी या काश्तकार किसी जमींदार की जमीन जोतने-बोने के लिए लेते समय उसे इसलिए लिखकर देता था कि नियत समय के उपरांत जमींदार को उस जमीन का फिर से मनमाना उपयोग करने का अधिकार हो जायगा। विशेष—इसकी स्वीकृति का सूचक जो लेख्य जमींदार लिख देता था, उसे ‘कबूलयित’ कहते थे। क्रि० प्र०—लिखना।—लिखाना। ३. कुछ स्थानों में वे नियम, जो लगान वसूल करनेवाले कर्मचारियों के लिए बनाये जाते थे। ४. उक्त के आधार पर कहार,धोबी,नाई भाट आदि का वह नेग, जो उन्हें वर-पक्ष से दिलवाया जाता था। क्रि० प्र०—चुकवाना।—चुकाना।—दिलाना।—देना। ५. चमड़े आदि का वह तस्मा या पट्टी जो कुछ पशुओं के गले में उन्हें बाँधकर रखने के लिए पहनाई जाती है। जैसे—कुत्ते,बंदर या बिल्ली के गले का पट्टा। ६. उक्त के आधार पर, कमर में बाँधने का चमड़े आदि का वह तस्मा, जिसमें चपरास टँगी रहती या तलवार लटकाई जाती है। ७. उक्त के आधार पर दक्षिण भारत या महाराष्ट्र देश की एक प्रकार की तलवार, जो कमर में लटकाई जाती थी। ८. किसी चीज का कोई कम चौड़ा और अधिक लंबा टुकड़ा जिससे कोई विशेष काम लिया जाता हो। जैसे—कामदार जूते या टोपी का पट्टा=मखमल आदि का वह लंबा टुकड़ा जिसपर सलमें-सितारे का काम बना हो। ९. कुछ चौड़ी पटरी के आकार का कलाई पर पहना जानेवाला एक प्रकार का गहना। १॰. कोई ऐसा चिन्ह या निसान जो कुछ कम चौड़ा और अधिक लंबा हो। जैसे—घोड़े या बैल के माथे का पट्टा। ११. एक प्रकार का लंबोत्तरा गहना जो घोड़ों के माथे पर लटकाया जाता है। १२. पुरुषों के सिर के दोनों ओर के बाल जो मध्ययुग में बड़ी पट्टी के रूप में, सँवारकर दोनों ओर लटकाये जाते थे। विशेष—स्त्रियों के इस प्रकार सँवारकर बाँधे हुए बाल ‘पट्टी’ कहलाते हैं। १३. बैठने के लिए बना हुआ काठ का पटरा। पीढ़ा। पुं० [?] कोई ऐसा अनाज, फली या दानों की बाल जो अभी पूरी तरह से पककर तैयार न हुई हो। (पूरब)। पुं० [सं० पट्टी] [स्त्री० अल्पा० पट्टी] १. एक प्रकार का प्राचीन शस्त्र। २. लड़ाई-भिड़ाई के समय का पैंतरा। |
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पट्टाधारी :
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पुं० [हिं० सं०] वह व्यक्ति जिसने किसी निश्चित अवधि के लिए कुछ शर्तों पर किसी से कोई जमीन या संपत्ति भोग्यार्थ प्राप्त की हो। पट्टे पर जमीन आदि लेनेवाला। (लीज होल्डर) |
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पट्टा-पछाड़ :
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पुं०=पट्टे-पछाड़। |
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पट्टा-बैठक :
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स्त्री०=पट्टे-बैठक। |
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पट्टाभिषेक :
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पुं० [सं० पट्ट-अभिषेक,स० त०] १. राज्याभिषेक। २. वे विशिष्ट कृत्य जो जैन विद्वानों को आचार्य पद पर प्रतिष्ठित करने के समय होते हैं। ३. वह साहित्यिक रचना, जिसमें उक्त कृत्यों का वर्णन होता है। |
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पट्टार :
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पुं० [सं० पट्ट√ऋ (गति)+अण्] [वि० पट्टारक] एक प्राचीन देश। |
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पट्टारक :
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वि० [सं० पट्टार+वुन्—अक] पट्टार देश का। |
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पट्टाही :
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स्त्री० [पट्ट-अही,स० त०] पटरानी। |
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