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जूती  : स्त्री० [हिं० जूता] १. स्त्रियों के पहनने का जूता जो अपेक्षया कुछ छोटा और हलका होता है। विशेष–इससे संबंद्ध अधिकतर मुहावरे मुख्यतः स्त्रियों में ही चलते हैं। मुहावरा–जूतियाँ चटकाना=व्यर्थ इधर-उधर घूमते रहना या मारे मारे फिरना। (किसी की) जूतियाँ सीधी करना=बहुत ही तुच्छ और हीन बनकर किसी की छोटी-छोटी सेवाएँ तक करना। (किसी को) जूती की नोक पर मारना=बहुत ही उपेक्ष्य तुच्छ या हेय समझना। (किसी की) जूती के बराबर न होना=किसी की तुलना में बिलकुल तुच्छ या नगण्य होना। (किसी को) जूती पर रखकर रोटी देना=किसी को बहुत ही तुच्छ या हीन ठहराते हुए अपने पास रखकर खिलाना-पिलाना।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
जूतीकारी  : स्त्री० [हिं० जूती+कार] लगातार जूतों की मार। (परिहास) जैसे–जब तक इसकी जूतीकारी न होगी तब तक यह सीधा न होगा।
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जूतीखोर  : वि०=जूताखोर।
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जूतीछिपाई  : स्त्री० [हिं० जूती+छिपाना] १. विवाह के समय की एक रसम जिसमें बधू की बहनें और सहेलियाँ वर को तंग करने के लिए उसके जूते कहीं छिपाकर रख देती हैं। २. उक्त रसम के बाद वह धन या नेग जो जूता चुरानेवाली लड़कियों को दिया जाता है।
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जूती-पैजार  : स्त्री० [हिं० जूती+फा० पैजार] १. आपस में होनेवाली जूतों की मार-पीट। २. बहुत ही बुरी तरह से या नीच लोगों की तरह होनेवाली कहा-सुनी या लड़ाई-झगड़ा।
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