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शब्द का अर्थ
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जिला :
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स्त्री० [अ०] १. अच्छी तरह साफ करके खूब चमकाने की क्रिया या भाव। २. उक्त प्रकार से उत्पन्न की हुई चमक-दमक। ओप। क्रि० प्र०–करना।–देना। पुं० [अ० ज़िलऽ] १. प्रदेश। प्रांत। २. आज-कल किसी राज्य का वह छोटा विभाग जो किसी एक प्रधान अधिकारी (कलक्टर या डिप्टी कमिश्नर) की देश-रेख में हो और जिसमें कई तहसीलें हों। ३. किसी इलाके या प्रदेश का कोई छोटा विभाग। ४. किसी बात या विषय की वह निश्चित सीमा जिसका उल्लंघन अनुचित माना जाता हो। जैसे–जिले की दिल्लगी=शिष्ट सम्मत परिहास (छूट की दिल्लगी से भिन्न)। |
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समानार्थी शब्द-
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जिलाकार :
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पुं० [अ० जिला+फा० कार] धातुओं को माँजकर तथा रोगन आदि के द्वारा उन्हें चमकानेवाला कारीगर। |
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जिला-जज :
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पुं० [अ० ज़िला+अं. जज] न्यायालय में, वह अधिकारी जिसे जिले भर के दीवानी और फौजदारी मुकदमों की अपीलें सुनने का अधिकार होता है। |
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जिलाट :
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पुं० [?] पुरानी चाल का एक प्रकार का चमड़े का बाजा। |
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जिलादार :
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पुं०=जिलेदार। |
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जिलादारी :
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स्त्री०=जिलेदारी। |
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जिलाना :
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स० हिं० जीना का स०] १. मृत शरीर को फिर से जीवित करना। जीवन डालना या देना। २. मरते हुए को मरने से बचाना। ३. ऐसा उपाय, प्रयत्न या व्यवस्था करना जिसमें कोई अच्छी तरह जीवित रह सके। ४. (पशु-पक्षी आदि) पालना-पोसना। ५. धातु की भस्म को फिर से धातु के रूप में परिवर्तित करना (कल्पित)। |
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जिला बोर्ड :
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पुं० [अ० ज़िला+अं० बोर्ड] वह अर्द्ध सरकारी संस्था जिसे किसी जिले की जनता चुनती है और जो स्थानीय प्रशासन तथा लोक-सेवा संबंधी कार्य करती है। |
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जिलासाज :
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पुं० [फा०] धातुओं के बरतनों, हथियारों आदि का ओप चढ़ानेवाला कारीगर। |
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जिलाह :
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वि० [अ० जल्लाद] अत्याचारी।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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