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शब्द का अर्थ
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शीतांग :
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पुं० [सं० ब० स०] शीत सन्निपात। वि० ठंढे अंगोंवाला। |
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शीतांगी :
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स्त्री० [सं० शीतांग-ङीष्] हंसपदी लता। |
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शीतांशु :
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पुं० [सं० ब० स०] १. चन्द्रमा। २. कपूर। |
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शीता :
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स्त्री० [सं० शीत-टाप्] १. सरदी। ठंढ़। २. एक प्रकार की दूब। ३. शिल्पिका नामक घास। ४. अमलतास। |
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शीतागार :
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पुं० [सं०]=शीतल भंडार। |
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शीताग्र :
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पुं० [सं० ष० त०] किसी ओर से आनेवाली शीतल वायु की धारा का वह अग्र भाग जो गरम वायु के सामने आ पड़ने के कारण कुछ नीचे दब जाता है और शीत की हल्की तह के रूप में किसी प्रदेश के ऊपर से होता हुआ आगे बढ़ता है (कोल्ड फ्रन्ट)। विशेष—जब यह शीताग्र किसी प्रदेश के ऊपर से होकर गुजरता है तब उस प्रदेश में तापमान और वायुमान गिर जाता है,आँधी आती और वर्षा होती है। |
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शीतातप :
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पुं० [सं० द्व० स०] शीत और आतप दोनों। जाड़ा और गरमी। |
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शीताद :
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पुं० [सं० शीत-आ√दा (देना)+का] एक प्रकार का रोग जिसमें मसूड़ों से दुर्गंध निकलने लगती है। |
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शीताद्रि :
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पुं० [सं० मध्यम० स०] हिमालय पर्वत। |
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शीताद्य :
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पुं० [सं० शीताद+यत्] शीतज्वर। जड़ी बुखार। |
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शीताभ :
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पुं० [सं० ब० स०] १. चन्द्रमा। २. कपूर। |
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शीतालु :
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वि० [सं० शीत+आलुच्] १. शीत के फलस्वरूप जो काँप रहा हो। २. शीत से संत्रस्त। |
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शीताश्म (मन्) :
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पुं० [सं० कर्म० स०] चन्द्रकांत मणि। |
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