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प्रताप  : पुं० [सं० प्र√तप्+घञ्] १. बहुत अधिक गरमी या ताप। २. ऐसा ताप जिसमें खूब चमक हो। तेज़। किसी बहुत बड़े आदमी की कर्मठता, योग्यता, नाम, यश आदि पर आश्रित ऐसा तेज, बल या महत्त्व जिसके प्रभाव से अनेक बड़े-बड़े काम अनायास या सहज में हो जाते हैं। इकबाल। जैसे—आप वहाँ नहीं गये तो क्या हुआ, आपके प्रताप से ही वहाँ का सारा काम हो गया। पद—पुण्य प्रताप=सत्कर्मों और तेज का प्रभाव। जैसे—बड़ों के पुण्य-प्रताप से सब काम बहुत अच्छा तरह हो गये। ४. पौरुष। मरदानगी। ५. बहादुरी। वीरता। ६. साहस। हिम्मत। ७. प्राचीन भारत में वह छत्र जो युवराज के सिर पर लगाया जाता था। ८. संगीत में कर्नाटकी पद्धति का एक राग। ९. आक य मदार का पौधा।
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प्रतापन  : पुं० [सं० प्र√तप+णिच्+ल्युट्—अन] १. खूब गरम करना। तपाना। २. ताप अर्थात् कष्ट या पीड़ा पहुँचाना। ३. एक नरक क नाम। ४. कुंभी-पाक नरक। ५. विष्णु। वि० १. ताप पहुँचानेवाला। २. कष्ट या पीड़ा देनेवाला।
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प्रतापवान् (वत्)  : वि० [सं० प्रताप+मतुप्] [स्त्री० प्रतापवती] (व्यक्ति) जिसका यथेष्ट प्रताप हो। प्रतापशाली। इकबालमंद।
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प्रताप-सारंग  : पुं० [सं०] संगीत में कर्नाटकी पद्धति का एक राग।
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प्रताप-हंसी  : स्त्री० [सं०] संगीत में कर्नाटकी पद्धति का एक राग।
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प्रतापी (पिन्)  : वि० [सं० प्रताप+इनि] १. प्रताप-संबंधी। २. जिसका चारों ओर प्रताप फैला हो। ३. जिसके प्रताप से सब काम होते हों। प्रतापशाली। ४. दुःख देने या सतानेवाला।
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