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गौं  : स्त्री० [सं० गम्, प्रा० गवँ] १. अपने स्वार्थ या हित के साधन की प्रबल इच्छा। प्रयोजन। मतलब। जैसे–वह अपनी गौं को आवेगा। पद–गौं का यार-मतलबी। स्वार्थी। मुहावरा-गौं गाँठना या निकालना अपना मतलब निकालना। स्वार्थ साधन करना। गौं पड़ना-मतलब होना। २. प्रयोजन, स्वार्थ आदि सिद्ध होने का उपयुक्त समय। उदाहरण–समय सयानी कीन्ही जैसी आई गौं परी।–तुलसी। मुहावरा–गौं ताकनास्वार्थ साधने के लिए उपयुक्त अवसर की ताक में रहना। ३. ढंग। ढब। ४. तरह। प्रकार। उदाहरण–भोग करौ जोई गौं–सूर। ५. पार्श्व। पक्ष।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
गौंच  : स्त्री० कौंछ।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गौंजिक  : पुं० [सं० गुञ्जा+ठक्-इक] १. जौहरी। २. सुनार। वि० गुंजा या घुँघची से संबंध रखनेवाला।
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गौंट  : पुं० [?] एक प्रकार का छोटा वृक्ष जिसकी लकड़ी बहुत कड़ी होती हैं।
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गौंटा  : पुं० [हिं० गाँव+टा (प्रत्य)] १. छोटा गाँव। २. गाँव से सब लोगों से लिया जानेवाला चन्दा। बेहरी। ३. गाँव की गली या पगडंडी। ४. बरात के घर लौट आने पर गाँव के लोगों को दिया जानेवाला दान।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गौंस  : स्त्री० =गौं।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गौंहाँ  : वि० [हिं० गाँव+हा (प्रत्य)] गाँव का। गाँव-संबंधी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गौंगा  : पुं० [अ०] १. सोर। गुल-गपाड़ा। हल्ला। २. अफवाह। जनश्रुति।
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गौंड़-सारंग  : पुं० [ब० स०] गौंड़ और सारंग के योग से बना हुआ एक संकर राग जो दिन के तीसरे पहर में गाया जाता है।
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गौंड़ी  : स्त्री० [सं० गुड़+अण्-ङीप्] १. गुड़ को सड़ाकर बनाई हुई शराब २. काव्य में एक प्रकार की रीत या वृत्ति जो ओज गुण प्रधान मानी जाती है तथा जिसमें द्वित्व, टवर्गीय, संयुक्त आदि वर्ण तथा लंबे-लंबे समास अधिक होते हैं। ३. संध्या के समय तथा रात के पहले पहर में गाई जानेवाली सम्पूर्ण जाति की एक रागिनी।
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गौंड़ीय  : वि० [सं० गौड़+छ–ईय] १. गौड़ संबंधी देश। गौड़ देश का। २. (साहित्यिक रचना) जिसमें गौड़ी वृत्ति के तत्त्व हों। पुं० चैतन्य महाप्रभु का चलाया हुआ एक प्रसिद्ध वैष्णव संप्रदाय। स्त्री० गौड़ देश की बोली या भाषा।
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