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गतंड  : पुं० [सं० गताण्ड] [स्त्री० गतंडी] हिजड़ा। नपुंसक। वि० बधिया। (राज०)(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गत  : भू० कृ० [सं०√गम् (जाना)+क्त] १. जो सामने से होता हुआ पीछे चला गया हो। गया या बीता हुआ। जैसे–गत जीवन, गत दिवस। २. जो नष्ट या लुप्त हो चुका हो। जैसे–गत वैभव, गत यौवन। ३. रहित। विहीन। जैसे–गत चेतना, गत ज्ञाति, गत नासिका। ४. जो इस लोक से चला गया हो। मृत। स्वर्गीय। जैसे–गतात्मा। प्रत्यय-एक प्रत्यय जो कुछ शब्दों के अंत में लगकर ये अर्थ देता है–(क) संबंध रखनेवाला। जैसे–जातिगत, जीवनगत, व्यक्तिगत आदि और (ख) आया, मिला या लगा हुआ। जैसे–अंतर्गत, बहिर्गत आदि। स्त्री० [सं० .गति] १. अवस्था। दशा। दुर्दशा। मुहावारा–(किसी की) गत बनाना=दुर्दशा करना। ३. रूप। वेष। ४. उपयोग। प्रयोग। ५. विशिष्ट ताल और लय में बँधे हुए बाजों की धुन या बोल। ६. नाच में एक विशेष प्रकार की गति अथवा ऐसी गति से युक्त नाच का कोई टुकड़ा। मुहावरा–गत लेना=नाच में विशेष प्रकार की गति प्रदर्शित करना। ७. मृतक का क्रिया कर्म।
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गतक  : पुं० [सं० गत+कन्] गति।
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गतका  : पुं० [सं० गदा या गदक] १. एक प्रकार का डंडा जो हाथ में लेकर पटा-बनेठी की तरह खेला जाता है। २. उक्त डंडा हाथ में लेकर खेला जानेवाला खेल जिसमें वार करने और रोकने के ढंग सिखायें जाते हैं।
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गतकाल  : पुं० [कर्म० स०] बीता हुआ समय। भूत।
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गत-कुल  : पुं० [ब० स०] वह संपत्ति जिसका कोई अधिकारी न बचा हो। लावारिस जायदाद या माल।
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गत-चेतन  : वि० [ब० स०] जिसमें चेतना न रह गई हो। अचेतन।
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गत-जीव  : वि० [ब० स० ] मरा हुआ। मृत।
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गत-प्रत्यागता  : स्त्री० [कर्म० स०] वह स्त्री जो अपने पति का घर पहले तो अपनी इच्छा से छोड़कर चली गई हो और फिर आप से आप कुछ दिनों बाद लौट आई हो। (धर्मशास्त्र)
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गत-प्राण  : वि० [ब० स०] मरा हुआ। मृत।
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गत-प्राय  : वि० [सुप्सुपा स०] जो करीब करीब जा या बीत चुका हो। अन्त या समाप्ति के पास पहुँचा हुआ। जैसे–गत-प्राय रजनी।
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गत-भर्तृका  : स्त्री० [ब० स० ] १. विधवा स्त्री। २. स्त्री, जिसका पति विदेश गया हो।
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गतर  : पुं० [सं०गति] १. अंग। २. शारीरिक बल या शक्ति। पौरुष। जैसे–अब हमारा गतर नही चलता। ३. रक्षा या शरण का स्थान।
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गत-वय(स्),वयस्क  : वि० [ब० स०] जिसका वय बहुत कुछ बीत चुका हो अर्थात् बुड्ढा। वृद्ध।
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गत-संग  : वि० न उदासीन। विरक्त।
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गत-सत्त्व  : वि० [ब० स०] १. सारहीन। निःसंत्व। २. मृत।
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गतांक  : वि० [गत-अंक,ब० स०] (व्यक्ति) जो गया बीता या निकम्मा हो। पुं० [कर्म० स०] सामयिक पत्र का पिछला अर्थात् वर्त्तमान से पहले का अंक।
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गतांत  : वि० [गत-अंत,ब० स०] जिसका अंत पास आ गया हो।
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गताक्ष  : वि० [गत-अक्षि,ब० स०] जिसकी आँखे न रह गई हों अर्थात् अंधा।
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गतागत  : वि० [गत-आगत,द्व० स०] १. गत और आगत। गया और आया हुआ। २. आत्मा का आवागमन अर्थात् जन्म और मरण। ३. साहित्य में एक प्रकार का शब्दालंकार जिसमें पदों या चरणों की रचना इस प्रकार की जाती है कि उन्हें सीधी तरह से पढ़ने से जो अर्थ निकलता है, उलटकर पढ़ने से भी वही अर्थ निकलता है। जैसे–माल बनी बल केशवदास सदा वश केल बनी बलमा।–केशव।
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गतागति  : स्त्री० [गत-आगति,द्व० स०] १.आना और जाना। २.मरना और फिर जन्म लेना।
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गतानुगत  : पुं० [गत-अनुगत,ष० त० ] प्रथा का अनुसरण।
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गतानुगतिक  : वि० [सं०गतानुगत+ठक्-इक] १. आँख मूदकर दूसरों का अनुसरण करनेवाला। अंधानुयायी। २. पुरातन आदर्श देखकर उसी के अनुसार चलनेवाला।
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गतायात  : पुं० [सं० गत-आयात,द्व० स०] जाना और आना। यातायात।
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गतायु(स्)  : वि० [सं०गत-आयुस्,ब०स० ] १. जिसकी आयु समाप्त हो चुकी हो। २. वृद्ध।
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गतार  : स्त्री० [सं० गंत्री] १. बैल के जुएँ में वे दोनों लकड़ियां जो उपरौछी और तरौछी के बीच समानान्तर लगी रहती हैं। २.वह रस्सी जो जुएँ में बँधे हुए बैल के गले के नीचे ले जाकर बाँधी जाती है। ३. बोझ बाँधने की रस्सी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गतार्त्तवा  : वि० स्त्री० [सं० गत-आर्त्तव,ब०स०] १. (स्त्री०) जिसका रजोदर्शन बन्द हो चुका हो। २. बाँझ। बंध्या।
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गतार्थ  : वि० [सं० गत-आर्त्तव,ब० स०] १. (पद या शब्द) जिसका कुछ अर्थ न रह गया हो। २. (पदार्थ) जो काम के योग्य न रह गया हो। ३. (व्यक्ति) जिसके हाथ से अर्थ या धन निकल गया हो। जो अपनी पूँजी गँवाकर निर्धन हो गया हो।
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गति  : स्त्री० [सं०√गम् (जाना)+क्तिन्] १. किसी वस्तु व्यक्ति अथवा उसके किसी अंग या अवयव के स्पंदित या हिलते डुलते रहने की अवस्था या भाव। (मोशन) २. चलने अथवा चलते हुए अपना काम करते रहने की अवस्था या भाव। जैसे–गाड़ी या गड़ी की मन्द गति। ३. अवस्था। दशा। ४. बाना। ५. पहुँच। पैठ। ६. प्रयत्न की सीमा। अंतिम उपाय। ७. एक मात्र सहारा या अवलंब। उदाहरण–जाके गति है हनुमान की।–तुलसी। ८. चेष्टा। प्रयत्न। ९. ढंग। रीति। १॰. मृत्यु के उपरांत जावात्मा का दूसरे शरीर में होनेवाला गमन। जैसे–धर्मात्माओं को उत्तम गति प्राप्त होना। ११.मुक्ति। मोक्ष। १२. दे० गत (नृत्य और संगीत की)।
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गतिक  : पुं० [सं० गति+कन्] १. चलने की क्रिया या भाव। चाल। २. मार्ग। रास्ता। ३. आश्रय। वि० १. गति संबंधी। २. भौतिक गति या चाल से संबंध रखनेवाला। (डायनामिक)
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गति-भंग  : पुं० [ष० त०] कविता पाठ, संगीत आदि की गति या लय का बीच में भंग या विकृत होना।
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गति-भेद  : पुं० [ष० त० ] =गतिभंग।
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गति-मंडल  : पुं० [ष० त० ] नृत्य में शरीर के विभिन्न अंगों की एक प्रकार की मुद्रा।
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गतिमान्(मत्)  : वि० [सं० गति+मतुप्] १. जिसमें गति हो। जो चल अथवा हिल-डुल रहा हो। चलता हुआ। २. जो अपना कार्य ठीक प्रकार से निरंतर कर रहा हो।
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गतिया  : पुं० [हिं० गत+इया (प्रत्यय)] संगीत में गत या लय ठीक रखनेवाला, अर्थात् ढोलक, तबला या मृदंग बजानेवाला।
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गति-रोध  : पुं० [सं० ष० त० ] १. बीच में कठिनाई या बाधा आ पड़ने के कारण किसी चलते हुए काम या बात का रुक जाना। २. किसी प्रकार के झगड़े या बात-चीत के समय बीच में उत्पन्न होनेवाली ऐसी स्थिति जिसमें दोनों पक्ष अपनी-अपनी बातों पर अड़ जाते हैं और समझौते का कोई रास्ता निकलते नहीं दिखाई देता। (डेडलाँक)
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गति-विज्ञान  : पुं० [ष० त०] विज्ञान का वह अंग जिसमें द्रव्यों की गति और उन्हें परिचालित करनेवाली शक्तियों का विवेचन होता है। (डायनामिक्स)
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गति-विद्या  : स्त्री० [ष० त०]=गति-विज्ञान।
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गति-विधि  : स्त्री० [ष० त०] आचरण-व्यवहार आदि करने अथवा रहने सहने का रंग-ढंग। जैसे–सेना की गति विधि की निरीक्षण करना।
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गति-शास्त्र  : पुं० [ष० त०]=गति-विज्ञान।
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गतिशील  : वि० [ब० स०] १. चलनेवाला या चलता हुआ। २. आगे की ओर बढ़नेवाला। उन्नतिशील। ३. जो स्वयं चलकर दूसरों को भी चलाता हो।
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गति-हीन  : वि० [पं० त०] १. जिसमें गति न हो। २. ठहरा या रुका हुआ। ३. जिसके लिए कोई गति या उपाय न हो। असहाय और दीन।
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गत्त  : स्त्री०=गति।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गत्ता  : पुं० [सं० गात्रक] [स्त्री० गत्ती] कागज की कई तावों या परतों को एक दूसरी पर चिपका कर बनाई हुई दफ्ती।
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गत्तालखाता  : पुं० [सं० गर्त्त,प्रा० गत्त+हिं० खाता] १. डूबी हुई या गई बीती रकम का खाता या लेखा। बट्टाखाता। २. वह अवस्था जिसमें कोई चीज नष्ट या समाप्त मान ली जाती है और उसके संबंध में आदमी निराश हो जाता है।
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गत्थ  : स्त्री० दे० गथ (पूँजी)।
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गत्यवरोध  : पुं० [सं० गति-अवरोध,ष० त० ]=गतिरोध।
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गत्वर  : वि० [सं०√गम्+क्वरप्, मलोप, तुक्] [स्त्री० गत्वरी] १. गति में रहने या होनेवाला। चलनेवाला या चलता हुआ। गमनशील। २. नष्ट हो जानेवाला। नश्वर।
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गत्वरा  : स्त्री० [सं० गत्वर+टाप्] पुरानी चाल की एक प्रकार की नाव।
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