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शब्द का अर्थ
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उद्गारना :
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स० [सं० उद्गार] १. मुँह से बाहर निकालना। २. उगलना। उभाड़ना, भड़काना। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
उद्गार :
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पुं० [सं० उद्√गृ (लीलना, शब्द)+घञ्] [वि० उद्गारी, भू० कृ० उद्गारित] तरल पदार्थ का वेगपूर्वक ऊपर उठकर बाहर निकलना। उफान। २. इस प्रकार वेग से बाहर निकला हुआ तरल पदार्थ। ३. वमन किया हुआ पदार्थ। ४. मुँह से निकला हुआ कफ। थूक। ५. खट्टा। डकार। ६. आधिक्य। बाढ़। उदाहरण—जब जब जो उद्गार होइ अति प्रेम विध्वंसक।—नंददास। ७. अधीरता आवेश आदि की अवस्था में मुँह से निकली हुई ऐसी बातें जो कुछ समय से मन में दबी रही हों। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
उद्गारी (रिन्) :
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वि० [सं० उद्√गृ (निगलना)+णिनि] १. उद्गार की क्रिया करने वाला। २. ऊपर की ओर या बाहर निकलने या निकालनेवाला। ३. डकार लेनेवाला। ४. कै या वमन करनेवाला। पुं० ज्योतिष में, बृहस्पति के बारहवें युग का दूसरा वर्ष। कहते हैं कि इसमें राज क्षय, उत्पात आदि होते हैं। |
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समानार्थी शब्द-
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उद्गारना :
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स० [सं० उद्गार] १. मुँह से बाहर निकालना। २. उगलना। उभाड़ना, भड़काना। |
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उद्गार :
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पुं० [सं० उद्√गृ (लीलना, शब्द)+घञ्] [वि० उद्गारी, भू० कृ० उद्गारित] तरल पदार्थ का वेगपूर्वक ऊपर उठकर बाहर निकलना। उफान। २. इस प्रकार वेग से बाहर निकला हुआ तरल पदार्थ। ३. वमन किया हुआ पदार्थ। ४. मुँह से निकला हुआ कफ। थूक। ५. खट्टा। डकार। ६. आधिक्य। बाढ़। उदाहरण—जब जब जो उद्गार होइ अति प्रेम विध्वंसक।—नंददास। ७. अधीरता आवेश आदि की अवस्था में मुँह से निकली हुई ऐसी बातें जो कुछ समय से मन में दबी रही हों। |
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उद्गारी (रिन्) :
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वि० [सं० उद्√गृ (निगलना)+णिनि] १. उद्गार की क्रिया करने वाला। २. ऊपर की ओर या बाहर निकलने या निकालनेवाला। ३. डकार लेनेवाला। ४. कै या वमन करनेवाला। पुं० ज्योतिष में, बृहस्पति के बारहवें युग का दूसरा वर्ष। कहते हैं कि इसमें राज क्षय, उत्पात आदि होते हैं। |
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